गोवा अपने समुद्री तटों पर व्याप्त रेत और चमकदार सूरज की किरणों के लिए दुनिया भर में प्रसिद्द है। गोवा जितना एक पर्यटक स्थान के रूप में समृद्ध है, यहां का इतिहास भी उतना ही भव्य और सांस्कृतिक रूप से अमूल्य है। गोवा के पुर्तगाल इतिहास से तो लोग अनजान नहीं हैं लेकिन क्या आप गोवा के सूक्ष्म आदिवासी इतिहास से परिचित हैं ? जैसे ही आप गोवा के इलाकों से होकर गुज़रेंगे आपको गोवा के आदिवासी इतिहास की झलक वहां की महिलाओं द्वारा पहनी हुई विशिष्ट लाल चेक प्रिंट की साड़ी में दिखेगी।
यह साधारण पर जीवंत वस्त्र जिसमें समय के साथ बदलाव आया, यह प्राचीन समय में गोवा की पहाड़ियों के आस पास रहने वाली कुनबी और गावड़ा नामक आदिवासी जनजातियों के शेष स्मारकों में से एक है।
गोवा के इंडो पुर्तगाल इतिहास के बारे में बहुत जाना गया है लेकिन गोवा के टेक्सटाइल इतिहास के बारे में बहुत कुछ अज्ञात है। गोवा के प्रारंभिक स्थानीय महिलाओं द्वारा पहनी गयी लाल चेक साड़ी 'कुनबी साड़ी' नाम से प्रचलित है और गोवा की सबसे पुरानी बुनावट है। पुर्तगालियों के आगमन ने कुनबी सहित क्षेत्र के अधिकांश देसी परिधानों को भी प्रभावित किया। यह साड़ी मूल रूप से कुनबी और गावड़ा जनजाति की महिलाओं द्वारा पहनी जाती थी जो मूल रूप से धान के खेत के मजदूर थे। पुराने समय में महिला मजदूरों द्वारा पहने जाने के कारण इस साड़ी का कपडा साधारण होता था और यह घुटनों से ठीक नीचे तक पहनी जाती थी जिससे कुनबी श्रमिकों को अपने दैनिक काम और कठिन कामों को करने में आसानी होती थी।
मूल रूप से कुनबी साड़ी को लाल रंग में रंगा जाता था और छोटे और बड़े चेक में बुना जाता था। डाई आयरन ओर (iron ore) , चावल कांजी (स्टार्च) और सिरका से बनायीं जाती थी। यह सभी प्रचुर मात्रा में गोवा में पाए जाते थे। यह साड़ी मूल रूप से चोली के बिना पहना जाती थी; हालांकि, इसे एक साधारण पफ आस्तीन के ब्लाउज के साथ भी पहना जाता था। पारंपरिक कुनबी महिलाएं खुद को साधारण कांच की लाल और हरी चूड़ियों से और काले मोतियों के हार के साथ सुशोभित करती थीं।
गोवा का कोई भी सांस्कृतिक आदिवासी नृत्य चाहे वो ढालो हो या फुगड़ी हो कुनबी साडी के बिना अधूरा रहता है। स्थानीय लोगों के बीच यह कपड़ नाम से लोकप्रिय थी और इसे आदिवासी साड़ी के नाम से भी जाना जाता है। आज भी आप मडगांव जाएं तो आपको भदेल नामक महिलाओं को लाल चेक की साड़ियां पहने दिख जाएंगे। पहनने में आसान यह कुनबी साड़ी आज भी खेतिहर महिलाओं के बीच उतनी ही लोकप्रिय है। 1940 तक यह साड़ियां ब्लाउज के बिना पहनी जाती थी लेकिन उसके बाद पुर्तगाल में कानून आ गया जिसमें ब्लाउज पहनना अनिवार्य कर दिया गया। कुनबी साड़ी या फिर आदिवासी साड़ी का लाल रंग मिटटी, उर्वरता और जीवंतता का प्रतीक है।
मशहूर फैशन डिजाइनर वेंडेल रॉड्रिक्स ने अपनी किताब "मोडा गोवा" और मशहूर टेक्सटाइल हिस्टोरियन जसलीन धमीजा की किताब "वोवन मैजिक" में कुनबी साड़ी के बारे में काफी बारीक जानकारियां हैं। कुनबी साड़ी का धार्मिक महत्त्व भी काफी है और यह देवी देवताओं को भी चढ़ाई जाती है। हालांकि इतनी धार्मिक और समाजित महत्ता होने के बाद भी आज कुनबी साड़ी को बनाने के लिए गोवा में हैंडलूम नहीं हैं जहां इस साड़ी को बुना जा सके और इसकी बुनाई की प्राचीन विधि भी पूरी तरह खो चुकी है।
इसके पहले की यह प्राचीन परिधान पूरी तरह इतिहास के पन्नो में खो जाए, आज टेक्सटाइल की दुनिया के काफी मशहूर लोग इस खोयी हुई बुनाई को बचाने के कई प्रयास कर रहे हैं और गोवा के काफी लोग कुनबी साड़ी को गोवा का ऐतिहासिक टेक्सटाइल घोषित करने के प्रयास में हैं।
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