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भारत की इन 5 किसान महिलाओं ने अपने इनोवेटिव और स्थायी समाधानों से कृषि क्षेत्र को नया आयाम दिया

भारतीय महिला किसान आज मौजूद कई चुनौतियों के लिए इनोवेटिव और स्थायी समाधान खोजने में मदद करने का बीड़ा उठा रही हैं।

Aastha Singh

भारत का कृषि क्षेत्र विविध, जीवंत और उत्साही है। वास्तव में, भारतीय कृषि लगातार विकसित हो रही है, न ही केवल व्यापक रूप से तकनीकों का इस्तेमाल करने के लिए बल्कि इसीलिए क्यूंकि पिछले एक दशक में, भारत के 'कृषि क्षेत्र ने महिलाओं की बदलती भूमिका को मज़बूत होते हुए देखा है। भारतीय कृषि क्षेत्र को आकार देने में महिलाओं का योगदान अभूतपूर्व है और अंतर्राष्ट्रीय मानवीय समूह OXFAM के अनुसार, भारतीय खेतों पर फुल- टाइम किसानों में से लगभग 75% महिलाएं हैं। महिला किसान दक्षिण एशियाई देशों के भोजन का 60% से 80% उत्पादन करती हैं। ये महिलाएं खेतिहर मजदूरों और उद्यमियों की भूमिका निभा रही है। आईये नज़र डालते हैं उन प्रेरक महिला किसानों और कृषि कार्यकर्ताओं पर जो पुरषों के समान विकास का मार्ग प्रशस्त कर रही हैं

कॉटन और दाल की खेती से तकदीर बनाने वालीं आत्रम पद्मा बाई

2,000 से अधिक किसानों वाले आठ गांवों की निर्वाचित सरपंच, 37 वर्षीय पद्मा बाई एक आदिवासी गिरिजन किसान थीं, जिन्होंने अपनी तीन एकड़ भूमि पर केवल कॉटन, ऑइल सीड्स और दाल की खेती की थी। 2013 में, उन्होंने फेयर ट्रेड प्रीमियम कमिटी से 30,000 रुपये का ऋण लिए जिससे उन्होंने कृषि उपकरणों के लिए हायरिंग सेंटर शुरू किया। उन्होंने कृषि उपकरणों के लिए एक हायरिंग सेंटर की स्थापना की, जो गरीब किसानों को मामूली दरों पर पिकैक्स, सिकल, स्पेड, कुदाल और व्हीलबारो जैसे कृषि उपकरण उधार देता था।

और 6 साल के सतत प्रयासों के बाद,उन्होंने कई साफ-सुथरी कंक्रीट की सड़कों का निर्माण किया है और स्वच्छ पानी को सुलभ बनाने और वर्षा जल संचयन के लिए जलाशयों का निर्माण करने के लिए सरकारी मंजूरी हासिल की है। एक ऐसी दुनिया में जहां ज्यादातर महिला किसानों का अपनी जमीन पर कोई हक़ नहीं है, पद्मा ने वास्तव में अपनी शर्तों पर अपने जीवन का निर्माण किया है।

मेदक की किसान महिलाएं

अपने ग्राम समुदायों में सबसे गरीब किसान समुदाय का प्रतिनिधित्व करने वाली तेलंगाना के मेडक जिले की ये महिला किसान कभी भूमिहीन मजदूर थीं, लेकिन किसानों को स्थायी वर्षा आधारित कृषि तकनीक सिखा रही हैं। डेक्कन डेवलपमेंट सोसाइटी (डीडीएस) के ग्रामीण स्तर के महिला संघों (स्वैच्छिक किसान संघों) की मदद से इन महिलाओं ने न केवल अपनी खेती की समस्याओं का प्रभावी ढंग से समाधान किया है लेकिन नवीन और पर्यावरण के अनुकूल तरीकों के माध्यम से एक अतिरिक्त आय भी पैदा कर रही हैं।

पारंपरिक संरक्षण तकनीकों का उपयोग करते हुए, ये महिलाएं जैविक बीजों को संरक्षित करती हैं। वे स्वस्थ अनाज को नीम के पत्तों, राख और सूखी घास के साथ मिट्टी के कंटेनर में रखती हैं। फिर वे पूरे डिब्बे को मिट्टी से सील कर देती हैं, सुखा देती हैं और सुरक्षित स्थान पर रख देती हैं।

वकील से खेतिहर बनीं अपर्णा राजगोपाल

शायद, अपर्णा राजगोपाल के लिए सम्मान का सबसे बड़ा सबब देश के एक प्रतिष्ठित लॉ स्कूल से ग्रेजुएट होना नहीं था बल्कि एक बंजर भूमि को उपजाऊ भूमि में बदलने था जो लगातार उपज देती रहती। पांच साल की अवधि में, उन्होंने स्वयं खेती की बारीकियों को सीखा और फ़ूड फॉरेस्ट बनाने के लिए पर्माकल्चर और पारंपरिक कृषि तकनीकों का इस्तेमाल किया। उनके द्वारा बना गया फॉरेस्ट एक पशु सैंक्चरी और एक सस्टेनेबल कृषि फार्म दोनों एक में है। अपर्णा उत्तर प्रदेश के ग्रामीणों को शिक्षा, स्वच्छता और स्वास्थ्य सेवा के साथ सशक्त बनाने के लिए बीजोम का उपयोग करती है। आज, वह सस्टेनेबल खेती के लिए नियंतर काम कर रही है और अधिक लोगों तक पहुंचने के लिए सामाजिक चैनलों का उपयोग करती है।

जयंतिया किसानों को आत्मनिर्भरता की ओर ले जाने वाली - त्रिनिती सावो

2020 पद्म श्री पुरस्कार विजेता त्रिनिती सावो ने अकेले ही मेघालय के जयंतिया हिल क्षेत्र के 800 से अधिक किसानों के जीवन को बदलने में मदद की। हल्दी की एक पारंपरिक किस्म की खेती के लिए एक आंदोलन का नेतृत्व करने के लिए पहचाने जाने वाले, त्रिनिती फसल को इस कम ज्ञात किस्म की खोज और प्रचार करने का श्रेय दिया जाता है।

उन्होंने महिला किसानों को सब्सिडी का लाभ उठाने और उनकी आय को तिगुना करने के लिए मार्केटिंग, डोक्युमेंटिंग और जैविक खेती सीखने में मदद की। अपनी उपज के लिए एक स्टोररूम के निर्माण के साथ, उन्होंने हल्दी को काटने और सुखाने से लेकर पैकेजिंग और वितरण तक सब कुछ लोकल कर दिया। 100 महिला स्वयं सहायता समूहों के साथ काम करते हुए जयंतिया हिल्स के किसानों को सशक्त करते हुए लकडोंग हल्दी के लिए एक अखिल भारतीय बाजार स्थापित किया।

कोयंबटूर की अग्रणी महिला किसान- पप्पम्मल

पद्म श्री पुरस्कार विजेता पप्पम्मल का काम दिन के उजाले से शुरू होता है, अपने कोयंबटूर के थेक्कमपट्टी गांव के 2.5 एकड़ के खेत में। न केवल अपने क्षेत्र में बल्कि अपने समुदाय में भी अग्रणी किसान के रूप में मानी जाने वाली, पप्पम्मल दो बार स्थानीय पंचायत के लिए चुनी जा चुकी हैं।

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) में कृषि विज्ञान केंद्र में एक प्रमुख किसान के रूप में, उन्होंने कृषि में महिलाओं की भूमिका को मान्यता देने के लिए काम किया, उन्होंने महिला किसानों को सक्रिय रूप से कृषि-विस्तार गतिविधियों में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया है। उनकी 2.5 एकड़ भूमि गृह विज्ञान और कृषि छात्रों के लिए जैविक और टिकाऊ कृषि पद्धतियों को सीखने की एक सक्रिय साइट बनी हुई है। थेक्कमपट्टी में सबसे बुजुर्ग कामकाजी किसान, पापम्मल एक 'लिविंग लीजेंड' हैं जो भारत में जैविक खेती को बढ़ावा देने की अपनी प्रतिबद्धता के लिए किसानों और राजनेताओं को प्रेरित करना जारी रखती हैं।

अंतिम ख्याल

ग्रामीण क्षेत्रों में सतत विकास को आकार देने में महिलाओं की शक्ति के बारे में कोई संदेह नहीं है। आज, कई भारतीय महिला किसान आज मौजूद कई चुनौतियों के लिए इन्नोवेटिव और स्थायी समाधान खोजने में मदद करने का बीड़ा उठा रही हैं। इन सभी महिलाओं में एक बात समान है - एक भावुक और अटूट विश्वास कि अपने नए और अनोखे व्यावसायिक दृष्टिकोणों के माध्यम से वे अपनी उपज को हरा भरा कर देंगी।

सशक्तिकरण की भावना का एहसास करने की कोशिश करते समय, महिलाओं को समान अवसर प्रदान करने के लिए लिंग मानदंडों को फिर से लिखना पड़ेगा। आखिरकार, कृषि और समाज में महिलाओं की भूमिका को फिर से परिभाषित करने का मतलब शुरुआत से शुरू करना है।

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