19वीं सदी की बात है जब मौजूदा जाति व्यवस्था महिलाओं के प्रति बेहद दमनकारी थी और पुरुषों के अहम् को हवा देने के लिए महिलाओं को भद्देपन का सामना करना पड़ता था। केरल के त्रावणकोर (Travancore) के शासनकाल में निम्न जाति नायर की महिलाओं को कमर से ऊपर बदन को कपड़े से ढकने का अधिकार नहीं था। यानी उन्हें अपना स्तन खुला ही रखना होता था। ये महिलाएं अर्धनग्न अवस्था में न रहकर यदि कपड़े से अपना स्तन ढकती थीं तो उन्हें ब्रेस्ट टैक्स (Breast Tax) देना होता था। जी हां, ब्रेस्ट टैक्स, जिसे मूलाकरम (Mulakkaram) कहा जाता था।
यह बात और ज्यादा शर्मिंदा करने वाली है कि यह ब्रेस्ट टैक्स महिलाओं के स्तन के आकार के आधार पर लिया जाता था। स्तन का आकार जितना बड़ा, टैक्स उतना ही अधिक होता था। वास्तव में, ब्रेस्ट टैक्स (Breast tax) निचली जाति की महिलाओं के लिए अपमानजनक था क्योंकि इस कारण दूसरों के बीच सम्मानपूर्वक जीने के अधिकार से वंचित थीं। ब्रेस्ट टैक्स (Breast tax) उनकी गरिमा और गोपनीयता पर हमला था।
नंगेली (Nangeli) और उसका पति एक छोटे से तटीय गांव चेरथला में रहते थे। वे खेतिहर मजदूर के रूप में काम करते थे और नारियल के पेड़ों से रस एकत्र करते थे। नंगेली (Nangeli) दलित थी, एझावा समुदाय से थी। उसने न केवल अपने लिए बल्कि सभी श्रमिक दलित महिलाओं के लिए आवाज उठाई। उनके विरोध ने उनके क्षेत्र में विद्रोह की चिंगारी जलाने में मदद की। नांगेली ने महसूस किया कि उनके समुदाय के साथ अन्याय हो रहा है। टैक्स के बोझ के कारण उनके पास दिन के अंत में खाने के लिए मुश्किल से मुट्ठी भर चावल का इंतज़ाम हो पाता था।
आसपास की महिलाओं की स्थिति दिन प्रतिदिन दयनीय होती जा रही थी और नंगेली का अन्यायपूर्ण और अपमानजनक टैक्स के ख़िलाफ़ गुस्सा फूट पड़ा। पति से बात की और निर्णय लिया कि किसी न किसी को तो आवाज उठानी ही होगी। पति ने नांगेली के विरोध में साथ देने का फैसला लिया और अगले ही दिन से नांगेली अपना स्तन ढकने लगी।
नंगेली (Nangeli) का यह कदम सामंतवादी (Feudalism) समाज के पुरुषों को उनके मुंह पर करारे तमाचे जैसा था। बात आगे पहुंची और फिर नांगेली और उसके पति से ब्रेस्ट टैक्स (Breast tax) की मांग की जाने लगी। एक महीने बाद अधिकारी टैक्स लेने घर आ धमके। नांगेली का स्तन मापा गया। इसके बाद नांगेली घर के भीतर गई और चाकू से अपने दोनों स्तन काट केले के पत्ते पर लेकर बाहर आईं। टैक्स अधिकारी के होश उड़ गए और वे डरकर भाग गए। कुछ देर बाद ही नांगेली की मृत्यु हो गई, लेकिन उनके इस साहसिक कदम ने समाज की अन्य महिलाओं को हिम्मत दी।
26 जुलाई 1859 को राजा के एक आदेश के जरिए महिलाओं के ऊपरी वस्त्र न पहनने के कानून को बदल दिया गया। और इस तरह नांगेली के बलिदान से महिलाओं ने अपना हक छीन कर हासिल किया। अजीब लग सकता है, पर केरल जैसे प्रगतिशील माने जाने वाले राज्य में भी महिलाओं को अंगवस्त्र या ब्लाउज पहनने का हक पाने के लिए 50 साल से ज्यादा सघन संघर्ष करना पड़ा।
नांगेली ने शोषित होने के बावजूद पारंपरिक यौन और सामाजिक मानकों का उल्लंघन किया। उसने अपने शरीर के प्रति समाज की शक्तिहीन सोच को शक्तिशाली प्रतिरोध में बदल दिया। भले ही नांगेली के शरीर को शोषित किया गया हो, लेकिन उसने भावनात्मक रूप से घायल होने को मंज़ूर नहीं किया। हमारे समाज में अक्सर यह देखा गया है किसी भी सामाजिक विकृती की तरफ़ हमारी चेतना को जगाने के लिए किसी मासूम को अपने प्राणों की कीमत चुकानी पड़ती है। लेकिन क्या यह सही है?
पुराने समय की बेबाक और निडर महिलाओं के बलिदान का ही नतीजा है की हम आज एक स्वतंत्र समाज में सांस ले रहे हैं, भले ही हमारे क़दमों के नीचे की मिट्टी अब कंक्रीट में बदल गयी हो, लेकिन हमें यह भूलना नहीं चाहिए कि हमारा वर्तमान अभी भी एक दोषपूर्ण, अक्सर अन्याय से भरे इतिहास के कंधों पर आधारित है और एक बेहतर समावेशी भविष्य के लिए प्रतिरोध की कहानियों का निरंतर लिखा जाना आवश्यक है।
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