लखनऊ की काकोरी तहसील में मौजूद है दशहरी गांव । यह कोई मामूली गाँव नहीं है क्योंकि मलिहाबाद और अवध की बेहद मशहूर और विविध आम की किस्म दशहरी का नाम इसी गाँव के बाद रखा गया है। यह इसीलिए क्योंकि यहां मौजूद है दशहरी आमों से लदा हुआ 200 साल पुराना विशाल आम का पेड़ जिसकी घनी-हरी टहनियों से लटकते हैं मोती जैसे सैंकड़ों दशहरी आम। इस पेड़ को मदर ऑफ़ मैंगो ट्री (Mother Of Mango Tree) कहा जाता है।
दिन की चिलचिलाती 42 डिग्री सेल्सियस के बावजूद, फैलती शाखाओं के नीचे आप एक अनोखी ठण्ड महसूस करेंगे और पेड़ की हरी भरी छत्रछाया में आराम से आश्रय लेते हुए पक्षियों के चहकने की आवाज़ को सुन सकेंगे। इस विशाल मैंगो ट्री (Mango Tree) को अब उत्तर प्रदेश सरकार ने हेरिटेज ट्री का दर्जा दिया है।
सागर ख़ैयामी साहब कहते हैं की "आमद से दशहरी की है, मंडी में दशहरा, हर आम नज़र आता है, माशूक़ का चेहरा, एक रंग में हल्का है, तो एक रंग में गहरा,कह डाला क़सीदे के एवज़, आम का सेहरा।"
मलीहाबाद को पूरे उत्तर भारत में आम के सबसे बड़े बागों में से एक के रूप में जाना जाता है। यहां उगाए जाने वाले आमों की कई अलग-अलग किस्मों में दशहरी सबसे लोकप्रिय है। इसकी विशिष्टता को देखते हुए, सितंबर 2009 में, इस पूरे क्षेत्र को भारत की भौगोलिक संकेत रजिस्ट्री द्वारा 'मैंगो मलिहाबाद दशहरी' के रूप में रजिस्टर किया गया था।
मलिहाबाद की विशेष पैदावार दशहरी को स्वाद और खुशबू के कारण दुनियाभर में शोहरत मिली है। यह आम अन्य प्रजातियों के मुकाबले टिकाऊ भी है इसलिए इसकी पहुंच भी देश-विदेश तक है। लेकिन माना जाता है की दशहरी गाँव के इस मदर ट्री की कलम से दशहरी के बाग लगे । दशहरी गांव के निवासी छोटे लाल कनौजिया बताते हैं कि पेड़ बचपन से लेकर आज तक एक ही तरह का है, इसमें कोई बदलाव नहीं हुआ है यह पेड़ दशहरी गांव की पहचान है लेकिन कोई इस पेड़ की टहनी चुराकर मलिहाबाद ले गया था और उसने मलिहाबाद में दशहरी आम को प्रसिद्ध कर दिया। असल में दशहरी आम दशहरी गांव की पहचान है ना कि मलिहाबाद की। साथ ही उनका यह भी कहना है कि यह पेड़ चमत्कारी पेड़ है।
1974 में बागवानी विभाग के एक प्रकाशन के अनुसार, दशहरी का यह 'मदर ट्री' लगभग 170 साल पुराना था, जिसकी उम्र अब लगभग 218 वर्षों पुराना है। लखनऊ के पास सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ सबट्रॉपिकल हॉर्टिकल्चर (CISH) का कहना है कि पिछले कुछ वर्षों में पेड़ ने लगातार 79-189 किलो आम की पैदावार की है। यह आश्चर्यजनक रूप से मजबूत पेड़ किसी भी उम्र से संबंधित समस्याओं से मुक्त नज़र आता है और इसका श्रेय आसपास की गोमती नदी की समृद्ध मिट्टी और पोषक तत्वों को जाता है। लगभग 35 फीट लम्बे पेड़ में 70 फीट फैली कैनोपी और लगभग 10 फीट की ट्रंक है। 12 प्रमुख मचान शाखाएं जमीन के समानांतर विकीर्ण होती हैं और तना छेदक या दीमक के हमलों से मुक्त होती हैं।
सोचिये, पीढ़ियों पहले उगा एक पौधा आज फलों के राजा आम की एक खास प्रजाति के जन्मदाता के रूप में पहचाना जाता है। इस पेड़ का संरक्षण समीर जैदी के पास है, जबकि यह पेड़ लखनऊ के नवाब की संपत्ति है, इसलिए इसके फलों को बेचा नहीं जाता है। नसीर अली बताते हैं, "बाकी इस पेड़ का आम नवाब साहब के यहां जाता है, अब मोहम्मद अंसार साहब के यहां, अब तो रहे नहीं तो उनके पोते हैं, इस आम की बिक्री नहीं होती। लोग इस पेड़ को बहुत दूर से देखने आते है इसकी फोटो भी खींचते है।"
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