उत्तर प्रदेश के आगरा में स्थित अकबर चर्च (Akbar's Church) उत्तर भारत की सबसे पुरानी चर्चों में से एक है। लेकिन, क्या आप जानते हैं की करीब साल 1600 में सोसाइटी ऑफ जीसस (Society of Jesus) द्वारा निर्मित यह चर्च महान मुग़ल बादशाह जलाल-उद-दीन मुहम्मद अकबर (Abu'l-Fath Jalal-ud-din Muhammad Akbar) के आदेश पर बनी थी जो ईसाई धर्म के बारे में अधिक जानना चाहते थे। इसी कारण चर्च का नाम अकबर चर्च रखा गया। एक मुग़ल सम्राट के नाम पर बनी एक ईसाई धर्म की संरचना प्राचीन भारत की उल्लेखनीय धार्मिक सहिष्णुता का प्रमाण है। तो आईये दो धर्मों के विचारों और सह-अस्तित्व की भावना से बनी इस ऐतिहासिक संरचना के पीछे के इतिहास का पता लगाते हैं।
तीसरे मुगल सम्राट अकबर जिन्होंने 1556 से 1605 तक भारत पर शासन किया और जिन्हे अपने अर्धशतक के शासन के दौरान अकबर के कई सैन्य कारनामों ने उन्हें "महानतम मुगल सम्राट" का खिताब दिलाया। अकबर प्रजा और सभी धर्मों के प्रति ममता और सौहार्द रखते थे। कला और संस्कृति के प्रति भी उनकी अधिक रूचि थी। वे नियमित रूप से विभिन्न धर्मों के पुजारियों और विद्वानों को अपने दरबार में आमंत्रित करते थे और उनसे दार्शनिक और धार्मिक मुद्दों पर बहस करने के लिए कहते थे।
1580 में, अकबर को पता चला कि जेसुइट पुजारियों का एक प्रतिनिधिमंडल गोवा में था जो उस समय पुर्तगाली औपनिवेशिक शासन के अधीन था। अकबर ने गोवा के पुर्तगाली गवर्नर को संदेश भेजा कि वह ईसाई पुजारियों से मिलना चाहते हैं। एक लम्बी यात्रा के बाद पुजारी अकबर के दरबार में पहुंचे और तीन साल तक वहां रहे। उनके ज्ञान से प्रभावित होकर अकबर ने आगरा के बाहरी इलाके में जेसुइट पुजारियों को पहला चर्च बनाने के लिए जमीन दी। चर्च 1598 में बनाया गया था, और इसे अकबर का चर्च कहा जाने लगा।
लेकिन पुर्तगालियों के साथ जहाँगीर के संबंध बिगड़ने लगे और ईसाई पुजारियों को कैद कर लिया गया। फिर जहांगीर के बेटे शाह जहाँ (Shah Jahan) ने जेसुइट पुजारियों को इस शर्त पर रिहा करने पर सहमति व्यक्त की कि चर्च को गिरा दिया जाए। अकबर के चर्च को 1635 में ध्वस्त कर दिया गया था, जिसे अगले साल ही फिर से बनाया जाना था। आज जो संरचना अकबर की उल्लेखनीय धार्मिक सहिष्णुता का प्रमाण बनकर स्थापित है - वास्तव में उसका निर्माण वर्ष 1769 है।
तब से आज तक यह चर्च पर्यटकों के लिए एक आकर्षण का केंद्र रहा है जो यहाँ की आंतरिक और बाहरी सुंदरता के माध्यम से चर्च की महानता को जानने के लिए आते हैं। एक मुस्लिम शासक के नाम पर रोमन कैथोलिक चर्च का नामकरण निश्चित रूप से उस समय प्रचलित धर्मनिरपेक्षता को प्रदर्शित करता है। भले ही इस असामान्य लेकिन दिलचस्प चर्च ने कई उतार-चढ़ाव देखे हैं, जिसके परिणामस्वरूप कई बार इसका विध्वंस और पुनर्निर्माण हुआ है, चर्च की प्राचीन सुंदरता अभी भी बरकरार है।
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