उत्तर भारत में स्थित यूपी देश का सबसे घनी आबादी वाला राज्य है जहाँ 75 जिले है। हर जिले की अपनी एक अलग तरह की बोली और खान-पान है। और उत्तर प्रदेश ही देश का एक मात्र ऐसा राज्य है जहाँ पर आपको लगभग हर धर्म के प्रमुख एवं प्रसिद्ध स्थल देखने को मिल जाएंगे, जिनका अपना इतिहास कई हज़ार साल पुराना है।
प्राचीन स्मारकों, साहित्य, दर्शन और पौराणिक समय के भवन और उनसे जुड़ी सांस्कृतिक विरासत आज भी यूपी में मौजूद है। इनमें कुछ शहर ऐसे है जहाँ धार्मिक आस्था का प्रभाव और मान्यता इतनी गहन है कि आप एक बार वहाँ चले गए तो खुद को अध्यात्म से जुड़ा हुआ महसूस करेंगे।
इस लेख में हम आपको उत्तर प्रदेश के उन शहरों के बारे में बताने जा रहे हैं, जहाँ आप आध्यात्मिकता को बेहद करीब से देख सकेंगे और सुख शांति की अनुभूति होगी।
वाराणसी, जिसे बनारस और काशी के नाम से भी जानते हैं। शिव की नगरी कही जाने वाली काशी को दुनिया के सबसे प्राचीनतम बसे शहरों में से एक बसा हुआ शहर माना जाता है। इसे मंदिरों का शहर, भारत की धार्मिक राजधानी, भगवान शिव की नगरी, दीपों का शहर, और ज्ञान नगरी भी कहा जाता है। इस शहर के बारे में ऐसी मान्यता है कि अगर मोक्ष प्राप्त करना है तो काशी आना ही पड़ेगा। यहाँ पर गंगा नदी और काशी विश्वनाथ मंदिर भगवान शिव को समर्पित सबसे प्रसिद्ध हिंदू मंदिरों में से एक है। यहाँ पर छोटे-छोटे हज़ारों मंदिर ऐसे है जिनका इतिहास हज़ारों साल पुराना है। इसके साथ ही गंगा घाट पर होने वाली आरती अपने आप में एक मंत्रमुग्ध कर देना वाला एहसास देती है जिससे आप खुद को अध्यात्म से जुड़ा हुआ महसूस करेंगे।
अमेरिका के प्रसिद्ध लेखक मार्क ट्वैन (Mark Twain) ने बनारस के बारे में लिखते हुए कहा था कि, “बनारस इतिहास से भी पुरातन है, परंपराओं से पुराना है, किंवदंतियों (लीजेन्ड्स) से भी प्राचीन है और जब इन सबको एकत्र कर दें, तो उस संग्रह से भी दोगुना प्राचीन है।”
भगवान 'विष्णु' के सातवें अवतार मर्यादा पुरुषोत्तम 'श्री राम' का जन्म स्थल है अयोध्या नगरी। राम राम जय राजा राम के भजन इस शहर में सुबह शाम आपको सुनाई देंगे। सरयू नदी के किनारे बसा यह शहर धार्मिक और ऐतिहासिक रूप से भरा हुआ है और इसे रामायण अनुसार प्रथम धरतीपुत्र 'स्वायंभुव मनु' ने बसाया था। श्री राम की जन्मस्थली होने के कारण अयोध्या को मोक्षदायिनी एवं हिन्दुओं की प्रमुख तीर्थस्थली के रूप में माना जाता है। अयोध्या को हिन्दू पौराणिक इतिहास में पवित्र और सबसे प्राचीन सप्त पुरियों में प्रथम माना गया है।
भगवान राम के कुल और जैन धर्म के पहले तीर्थंकर ऋषभनाथ का भी जन्म अयोध्या में ही हुआ था। और इनके साथ ही अजितनाथ, अभिनंदननाथ, सुमतिनाथ और अनंतनाथ भी यही जन्में थे और इसी कारण यह नगरी जैन धर्म के लिए भी बहुत ही पवित्र मानी जाती है।
अयोध्या में अ मतलब ब्रह्मा, य मतलब विष्षु और ध का मतलब शिव है। और यह नगर भगवान विष्णु के चक्र पर स्थित है। स्कंद पुराण के अनुसार अयोध्या भगवान विष्णु के चक्र पर विराजमान है।
ताज नगरी आगरा से करीब 50 किलोमीटर दूर स्थित मथुरा या बृज-भुमी के केंद्र में भगवान कृष्ण का जन्मस्थान है, जिसे श्रीकृष्ण जन्म-भूमि कहा जाता है। महाभारत और भागवत पुराण महाकाव्यों के मुताबिक, मथुरा सुरसना साम्राज्य की राजधानी थी, जिसका शासन श्री कृष्ण के मामा कंस ने किया था। इस पूरे शहर में भव्य और खूबसूरत मंदिर बने हुए हैं जो श्री कृष्ण के जीवन के बारे में बताते है। श्री कृष्ण का जन्म और लालन पालन यही हुआ था। गोविन्द देव मंदिर, रंगजी मंदिर, द्वारकाधीश मंदिर, बांकेबिहारी मंदिर और इस्कॉन मंदिर यहाँ के प्रमुख मंदिरों में से हैं। होली के अवसर पर लट्ठमार होली धूम धाम से खेली जाती है और कृष्ण जन्माष्टमी के मौके पर बड़े बड़े आयोजन किये जाते हैं।
इस दौरान पूरी मथुरा नगरी 'हरे कृष्णा हरे रामा' के मधुर गीतों और भजनों से गूंजती है जो अध्यात्म के करीब ले जाती है।
वृन्दावन को मथुरा का जुड़वाँ शहर कहा जाता है और यह मथुरा से 15 किलोमीटर की दूरी पर उत्तर-पश्चिम में यमुना तट पर स्थित है। यह कृष्ण की लीलास्थली है और यहीं उन्होंने गोपियों से शरारतें की और राधा का दिल जीता था। वृंदावन में 5000 से भी ज्यादा मंदिर हैं और यहाँ के मंदिरों का पवित्रम स्थल आमतौर पर एक ऐसे कमरे में होता है जहाँ सीढ़ियों के माध्यम से आसानी से पहुँचा जा सके। इन सभी मंदिरों में नक्काशीदार खंबे मौजूद है जो मंदिर की खूबसूरती में चार चाँद लगाते हैं।
मदन मोहन मंदिर, बांके बिहारी मंदिर, श्री राधा रमण मंदिर, रंगाजी मंदिर, गोविंद देव मंदिर और इस्कॉन (द इंटरनेशनल सोसाइटी फॉर कृष्णा कांशसनेस) महत्वपूर्ण एवं प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है। इसके साथ ही वृन्दावन में कई अन्य मंदिर भी है, जिनमें पागल बाबा मंदिर, राधा-वल्लभ मंदिर, जयपुर मंदिर, शाहजी मंदिर, सेवा कुंज, श्री राधा श्याम सुंदर मंदिर है जो उस युग की कलात्मक अभिव्यक्ति है।
वाराणसी से 63 किलोमीटर दूर और मिर्ज़ापुर से 7 किलोमीटर की दूरी पर विन्ध्याचल स्थित है जहाँ आपको माँ विंध्यवासिनी देवी के दर्शन होंगे। ‘भगवती विंध्यवासिनी आद्या महाशक्ति हैं। विन्ध्याचल सदा से उनका निवास-स्थान रहा है। जगदम्बा की नित्य उपस्थिति ने विंध्यगिरिको जाग्रत शक्तिपीठ बना दिया है। यहाँ आपको माता दुर्गा के कई मंदिर देखें को मिल जाएंगे और प्रमुख मंदिरों में शक्तिपीठ, अष्टभुजी देवी मंदिर , काली खोह मन्दिर , सीता कुण्ड , विन्ध्याचल के गंगाघाट के भी दर्शन कर सकते है |
यहाँ के बारे में मान्यता है कि, भगवन श्री राम ने अपने 14 साल के वनवास की अवधि में पत्नी सीता, और भाई लक्ष्मण के साथ विंध्याचल और आसपास के क्षेत्रों में आए थे और भावी जीवन में सफलता के लिए मां विंध्यवासिनी की गुप्त साधना भी की थी। सीता कुंड, सीता रसोई, राम गया घाट, रामेश्वर मंदिर इस दिव्य जगह पर मानवता के इस महान नायक की यात्रा के प्रमाण हैं। प्राचीन समय में, विंध्याचल मंदिर ‘शक्ति’ संप्रदाय’ एवं हिंदू धर्म के अन्य संप्रदायों के मंदिरों और धार्मिक केंद्रों से घिरा हुआ था जिस कारण से इसकी ऊर्जा और महत्ता अत्यधिक थी, हालांकि, कट्टरपंथी मुस्लिम सम्राट औरंगजेब के शासनकाल में, इनमें से कई को नष्ट कर दिया गया था।
सारनाथ, शिव की प्रिय नगरी काशी (वाराणसी) से लगभग 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है और यह प्राचीन काल से ऋषिपाटन और मृगदव नाम से भी प्रसिद्ध है। यह स्थल महात्मा बुद्ध और जैन तीर्थंकर श्रेयांस नाथ जैसे महान पौराणिक कथाओं के कार्यस्थल होने के लिए भी प्रसिद्ध है। यहीं पर हिरण पार्क है जहाँ गौतम बुद्ध ने पहली बार धम्म को पढ़ाया था, और जहां बौद्ध संघ कोंडन्ना के ज्ञान के माध्यम से अस्तित्व में आया था। यह बौद्ध स्थलों में एक महत्वपूर्ण, पवित्र और प्रसिद्ध धार्मिक बौद्ध तीर्थ स्थल है और यहीं पर भगवान बुद्ध ने अपनी धार्मिक यात्रा 528 ईसा पूर्व में अपना पहला उपदेश देकर शुरू की थी।
साथ ही सम्राट अशोक ने 273-232 ईसा पूर्व यहां बौद्ध संघ के प्रतीक स्वरूप विशालकाय स्तंभ स्थापित किया था। इसके ऊपर स्थापित सिंह आज भारत देश का राष्ट्रीय प्रतीक है।
मेरठ से 37 किलोमीटर की दूरी पर गंगा नदी के किनारे हस्तिनापुर बसा हुआ है और महाभारत एक तरह से यहीं से शुरू हुआ था और यह कुरु वंश की राजधानी थी। महाभारत की कई सारी घटनाएँ यहीं हुई थी और कौरवों और पांडवों का मिलान भी इसी नगर में हुआ था। हस्तिनापुर की कहानी की शुरुआत में - कुंती, पांच पांडव और ऋषि 16 साल बाद हस्तिनापुर लौटे थे। पौराणिक कथाओं के अनुसार, यहां पांडवों और कौरवों के मध्य होने वाला महान युद्ध, महाभारत हुआ था। इस युद्ध में पांडव जीत गए थे और उन्होने अगले 36 सालों तक हस्तिनापुर पर राज किया था, जब तक कलयुग की शुरूआत नहीं हो गई थी। हस्तिनापुर, हिंदू और जैन, दोनों धर्मो के लिए पवित्र स्थल है। यहां कई पवित्र मंदिर जैसे - पंडेश्वर मंदिर, करण मंदिर, कमल मंदिर स्थित है।
हस्तिनापुर, जैन समुदाय के लोगों के लिए भी एक पवित्र स्थल है। जैन समुदायों के लिए इस शहर में दिगम्बर जैन बड़ा मंदिर, जैन जम्बूदद्वीप मंदिर और श्री श्वेताम्बर जैन मंदिर हैं। जैन धर्म के 24 तीर्थांकरों में से 16, 17 और 18 वें तीर्थांकर का जन्म यहीं हुआ था। इस शहर में हर वर्ष भारी संख्या में जैन श्रद्धालु दर्शन के लिए आते है।
प्रयागराज जिसे पहले इलाहाबाद कहा जाता है, भारत के सबसे प्राचीन शहरों में से है और ग्रंथों में इसे तीर्थराज के नाम से जाना जाता है और यह देश का सबसे पवित्र स्थल माना जाता है। यह तीन नदियों- गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के संगम पर स्थित है और यहीं गंगा का मटमैला पानी यमुना के हरे पानी में मिलता है। और यहीं मिलती है अदृश्य मानी जाने वाली सरस्वती नदी। यह तीन नदियों- गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के संगम पर स्थित है। यहीं सरस्वती नदी गुप्त रूप से संगम में मिलती है, अतः ये त्रिवेणी संगम कहलाता है, जहां प्रत्येक बारह वर्ष में कुंभ मेला लगता है।
प्रयागराज में ही इस पृथ्वी का प्रत्येक 6 वर्षों में अर्द्धकुम्भ और प्रत्येक 12 वर्षों में महाकुंभ का सबसे बड़ा आयोजन होता है। जिसमें विश्व के विभिन्न कोनों से करोड़ों श्रद्धालु पतितपावनी गंगा, यमुना और सरस्वती के पवित्र त्रिवेणी संगम में आस्था की डुबकी लगाने आते हैं। अतः इस नगर को संगमनगरी, कुंभनगरी, तंबूनगरी आदि नामों से भी जाना जाता है। सन् 1500 की शताब्दी में मुस्लिम राजा द्वारा इस शहर का नाम प्रयागराज से बदलकर इलाहाबाद किया था जिसे सन् अक्टूबर 2018 में तत्कालीन मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने वापस बदलकर प्रयागराज कर दिया।
तो ये थे उत्तर प्रदेश के वो सबसे धार्मिक और अध्यात्म से जुड़े हुए शहर जहाँ आपको एक बार घूमने जरूर जाना चाहिए। यहाँ की ऐतिहासिक विरासत और पुरातात्त्विक महत्त्व का जिक्र पुराणों और ग्रन्थों में भी मौजूद है जिसे आप यहाँ खुद आकर देख और महसूस कर सकते हैं।
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