ANATOMY OF INFLATION - इन्फ्लेशन क्या है, कारण और आम जनता पर इसके प्रभाव
भारत में इन्फ्लेशन (Inflation) आम लोगों के लिए परेशानियों का सबब बन चुका है और सरकार के कम्फर्ट ज़ोन से काफी आगे बढ़ गया है। भारतीय इतिहास में सरकारों के बदलने और उथल पुथल होने के लिए मुद्रास्फूर्ति याने की इन्फ्लेशन (Inflation) का बड़ा हाथ रहा है।
अप्रैल 2022 में 7.8 प्रतिशत इन्फ्लेशन रेट देखा गया। यह उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (consumer price index) में सबसे अधिक बढ़ोतरी है जो भारत ने आठ वर्षों में देखी है। यह सरकार और रिज़र्व बैंक द्वारा सेट किये जाने वाले 4 प्रतिशत के इन्फ्लेशन टारगेट या फिर 2016 में सरकार द्वारा निर्धारित 6 प्रतिशत की अपर टॉलरेंस लिमिट से भी बहुत अधिक है जिसे अप्रैल 2021 में पांच साल की अवधि के लिए रेन्यु किया गया है।
आज हम बात करते हैं की इन्फ्लेशन आख़िरकार है क्या, ये क्यों होता है और यह किन कारणों से होता है और आम जनता के लिए जीवन यापन तथाकथित उनकी जान से महंगी हो जाती है।
जनरल प्राइस लेवल में निरंतर और ओवरॉल बढ़ोतरी- इन्फ्लेशन
वर्ष 2010 और 2011 में देश के सभी नागरिक कीमतों के लगातार बढ़ने से परेशान थे। उस वक्त 'दाल' जो की कीमतों ने लगभग 100 रुपये प्रति किलोग्राम के उच्च स्तर को छू लिया था। जवाब में, सरकार ने दाल के इम्पोर्ट पर सीमा शुल्क (customs duty) घटाकर शून्य कर दिया, इस उम्मीद में कि दाल की कीमतों में कमी आएगी।
लेकिन, क्या दाल की कीमतों में बढ़ोतरी एक अकेला मामला था ?
आम तौर पर अधिकांश वस्तुओं की समस्या कितनी क्रिटिकल थी ? यदि हम समाचार पत्रों द्वारा उपलब्ध कराए गए आँकड़ों और सरकार की घोषणाएं पर जाएँ तो महंगाई सिंगल डिजिट से बढ़कर बल्कि 10 से 12 प्रतिशत के इर्द गिर्द थी। ये नंबर हमें क्या बताते हैं ? वे हमें बताते हैं कि सामान्य मूल्य स्तर में एक निरंतर और समग्र वृद्धि हुई थी।
इन्फ्लेशन बस यही है - a sustained and overall rise in the general price level.
चलिए फ़र्ज़ करते हैं की वस्तुओं की कीमतें नार्मल हैं, स्थिर हैं, इन्फ्लेशन तब होता है जब यह स्थिरता ब्रेक हो जाती है। गुड्स और सर्विसेज की डिमांड उनकी उपलब्ध सप्लाई से जब एक निरंतर समय तक अधिक रहती है तब इन्फ्लेशन ट्रिगर है। याने की इन्फ्लेशन तब होता है जब सप्लाई की कमी के कारण अधिकांश गुड्स और सर्विसेज की कीमतें बढ़ने लगती हैं। इन्फ्लेशन को कहा जाता है (too many consumers chasing too few goods) याने की डिमांड की अपेक्षा सप्लाई में कमी जिससे बाजार में खरीदारों के बीच कम्पटीशन हो जाता है और कीमतें बढ़ जाती हैं।
कीमतों में मध्यम वृद्धि के साथ यदि उत्पादन स्तर बढ़े, तो इन्फ्लेशन नियंत्रण में रहता है।
इन्फ्लेशन के टाइप
कॉस्ट पुश इन्फ्लेशन (Cost-push inflation: Supply Shock)
मुख्य और मोटे तौर पर इन्फ्लेशन दो प्रकार का होता है कॉस्ट पुश इन्फ्लेशन (Cost push inflation) और डिमांड-पुल इन्फ्लेशन (Demand Pull inflation)
पहले बात करते हैं कॉस्ट पुश इन्फ्लेशन (Cost push inflation) की जो की भारत में कृषि क्षेत्र में सबसे अधिक देखा जाता है। देश में कम वर्षा होने से सूखा पड़ने के कारण कृषि उत्पादों में कमी देखी जाती है। डिमांड की अपेक्षा खाद्य पदार्थ और कृषि उत्पाद की सप्लाई में कमी के कारण जो उद्योग कृषि उत्पादों को कच्चे माल के तौर पर इस्तेमाल करते हैं, वे लागत को कवर करने के लिए कीमतों को बढ़ा देते हैं जिसका प्रभाव उपभोगताओं पर पड़ता है। ये कम सप्लाई के कारण होता है इसीलिए इसे सप्लाई साइड इन्फ्लेशन भी कहा जाता है।
Cost push inflation लेबर, कच्चे माल आदि जैसे प्रोडक्शन इनपुट की कीमतों में वृद्धि के कारण होता है।
डिमांड-पुल इन्फ्लेशन (Demand-Pull inflation)
इसके पीछे का मुख्य कारण मांग (Demand) तथा आपूर्ति (supply) में अंतर होता है|
यानी कि यदि इसे सरल शब्दों में समझें तो किसी वस्तु का प्रोडक्शन कम होता है तथा उसको खरीदने वाले ज्यादा होते हैं, तो उस वस्तु के दाम बढ़ना तय है| एक दुकानदार के पास माल कम है तथा ग्राहक ज्यादा है तो निश्चित तौर पर ही वह उसको उच्च कीमत पर बेचेगा|जब वस्तुओं या सेवाओं की मांग अर्थव्यवस्था में मौजूदा आउटपुट लेवल से अधिक हो जाती है तो इसे ही डिमांड-पुल इन्फ्लेशन (Demand-pull inflation) कहते हैं|
एक्सपोर्ट में वृद्धि, घरेलू और फर्म के खर्च में वृद्धि, सरकारी खरीद में वृद्धि, मनी सप्लाई में वृद्धि डिमांड पुल इन्फ्लेशन का कारण हो सकते हैं। हमें ध्यान देना चाहिए की हालांकि, डिमांड पुल इन्फ्लेशन को अर्थव्यवस्था के लिए अच्छा माना जाता है क्योंकि यह उत्पादकों को अधिक उत्पादन करने के लिए प्रोत्साहन देता है। यदि कीमतों में मध्यम वृद्धि के साथ आउटपुट लेवल में भी वृद्धि होती है तो इन्फ्लेशन नियंत्रण में रहता है।
लगातार बढ़ रहे इन्फ्लेशन का आम जनता पर प्रभाव
पिछले कुछ महीनों में लगभग सभी आवश्यक वस्तुओं के दाम बढ़ गए हैं जिससे आम लोग अपने घरों के बजट में बदलाव करने पर मजबूर हो गए हैं। रूस और यूक्रेन के बीच जारी जंग ने ग्लोबल सप्लाई चेन में खलबली मचा दी है और नतीजतन क्रूड आयल और अन्य ज़रूरी वस्तुओं की कीमतें आसमान छू रही हैं। देश की ऑइल कपनियां हाई इम्पोर्ट कॉस्ट को कवर करने के लिए घरेलु स्तर पर पेट्रोल और डीजल की कीमतों को बढ़ा दिया है।
स्थिति कुछ यूं है की रिज़र्व बैंक का इस कोविड से ग्रसित अर्थव्यवस्था को रिवाइव करने के प्रयासों से ज़्यादा ज़रूरी हो गया है इन्फ्लेशन के दुष्प्रभावों को कम करना। इन्फ्लेशन के निवारण के तौर पर यदि रिज़र्व बैंक ब्याज की दरों में वृद्धि करने की सोचता है तो यह आम जनता के महीने के खर्च पर इसके दुष्प्रभाव होंगे क्यूंकि लोन चुकाने के लिए EMI का अमाउंट बढ़ जाएगा। इसे और क्लियर करने के लिए, हम इसे निम्नलिखित उदाहरण के माध्यम से समझते हैं -
मान लें कि कोई व्यक्ति 20 सालों के लिए 50 लाख रुपये की कीमत पर 7 प्रतिशत ब्याज दे रहा है तो EMI की कीमत 38,765 होगी। अब यदि रिज़र्व बैंक 50 बेसिस पॉइंट्स से ब्याज की दरों को बढ़ा दें याने की 7.5 प्रतिशत कर दे तो EMI का अमाउंट 40,280 रुपये हो जाएगा। इसका निष्कर्ष यही है की रिज़र्व बैंक यदि ब्याज की दरों को बढ़ाता है तो किसी व्यक्ति की जेब पर इसका प्रभाव अधिक होगा। इसीलिए एक व्यक्ति अधिक भुगतान करने के लिए मजबूर हो जाएगा।
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