भारत की इन 8 सुपर दादियों की कहानी देश के युवाओं को साहस और निडरता से जीवन जीने की प्रेरणा देती है
दुनिया भर में कई प्रतिभावान व्यक्तियों ने समय-समय पर अपने साहसी और ईमानदार कामों से इस संसार का उद्धार किया है, जनमानस को आगे बढ़ने और कुछ कर गुजरने की हिम्मत दी है। जबकि कुछ लोग अपने शुरूआती जीवन में चौंका देने वाली सफलता प्राप्त करते हैं, बाग़ के कुछ फूल देर से खिलते हैं, लेकिन आने वाली कई पीढ़ियों को अपनी कर्मठता और कोमलता से महँका देते हैं। उनका कभी न हारने वाला रवैया पीढ़ियों के बीच जंगल की आग की तरह फैल जाता है। ऐसी ही 8 कर्मठ और उज्जवल दादियों का वर्णन हम आज करेंगे जिनकी अटूट मेहनत और अपराजेय जज़्बे के कारण उनके भाग्य का सूर्य भले ही देर से उदित हुआ लेकिन सॉलिड हुआ।
अपनी शूटिंग से सभी रूढ़िवादी दीवारों को धाराशाही करने वाली चंद्रो तोमर
1931 में जन्मी, चंद्रो तोमर (Chando Tomar) ने अपने जीवन के 80 के दशक में शूटिंग के खेल के लिए अपने जुनून के माध्यम से हजारों लोगों, विशेष रूप से महिलाओं और लड़कियों को प्रेरित किया। उसके पहले तक, वे भारत के सबसे रूढ़िवादी क्षेत्रों में से एक, उत्तर प्रदेश राज्य के एक गाँव, जौहरी में एक साधारण जीवन व्यतीत कर रही थीं। लेकिन अपनी पोती शेफाली, जो उस समय 12 वर्ष की थी, उसके साथ एक स्थानीय शूटिंग रेंज की यात्रा ने सब कुछ बदल दिया। उन्होंने पाया कि शूटिंग के रूप में जीवन ने उन्हें एक तौफे से नवाज़ा है।
रेंज के एक कोच ने उन्हें अभ्यास करने के लिए प्रोत्साहित किया, और वह हर हफ्ते शेफाली के साथ, उसकी सुरक्षा करने की आड़ में रेंज में लौट आती थीं। चंद्रा तोमर,एक लंबी स्कर्ट, ब्लाउज और सिर पर दुपट्टा पहने हुए, अपने 80 के दशक में शूटिंग प्रतियोगिताओं में अक्सर मिलिट्री बैकग्राउंड वाले पुरुषों के खिलाफ शूटिंग में भाग लेती रहीं। उन्होंने अंततः 25 से अधिक पदक जीते।
उम्र की सीमाओं को लाँगती हुई 105 साल की रामबाई
खेल जगत के लोगों के बारे में जब हम बात करते हैं तो 'ऐज इज़ जस्ट ए नंबर' वाक्य का अक्सर इस्तेमाल किया जाता है क्योंकि कई एथलीट अपने करियर में देर से चमकने से दूसरों को प्रेरित करते हैं। 105 साल की रामबाई की अविश्वसनीय कहानी यही कहती है कि उम्र वास्तव में एक संख्या है और किसी को भी इसके झांसे में नहीं आना चाहिए। रामबाई ने 100 मीटर दौड़ में गोल्ड हासिल कर नया रिकॉर्ड बनाया। वडोदरा में भारतीय एथलेटिक्स महासंघ द्वारा आयोजित राष्ट्रीय ओपन मास्टर्स एथलेटिक्स चैंपियनशिप में 'युवा महिला' को सभी बाधाओं को पार करने और 100 मीटर में एक नया रिकॉर्ड बनाने में 45.40 सेकंड का समय लगा। रामबाई की उपलब्धियाँ हम सभी को याद दिलाती हैं कि सीमाएँ केवल वही होती हैं जो व्यक्ति खुद के लिए निर्धारित करता है।
शकुंतला गोस्वामी और देवकी बाई की उम्र 80 साल है लेकिन जोश युवाओं जैसा है
परिवार से दूर अक्सर लोग वृद्धावस्था में अपने जीवन की उम्मीद छोड़ देते हैं और अकेलेपन से हताश रहते हैं। दिनचर्या के कामों को छोड़कर लोग ज्यादा कुछ नहीं करते हैं। लेकिन देवकी बाई की उम्र 80 साल है और शकुंतला गोस्वामी अभी 78 की हैं। दोनों वृद्धाश्रम में रहती हैं और उम्र के इस पड़ाव में भी वे अपनी जिंदगी का पूरा लुत्फ ले रही हैं। दोनों अपने शौक पूरे कर रही हैं यहाँ देवकी बाई घुड़सवारी सीख रही हैं और शकुंतला फर्राटे से स्कूटी चलाती हैं। वृद्धाश्रम के संचालक दिनेश चौधरी भी इनके जज्बे और हौसले की तारीफ करते हैं. यहां मौजूद वृद्ध भी तालियां बजाकर उनका स्वागत करते हैं।
रेशम बाई तंवर की 95 वर्ष की उम्र में है तीखी और तेज़ रफ़्तार
चले गए वो दिन जब युवा लड़के लड़कियों सड़क पर रफ़्तार से ड्राइव करते नज़र आते थे। अब ये रफ़्तार की कमान देवास (Dewas) की दादी रेशम बाई ने अपने हाथ में ली है और दादी को जो भी कोई भी उनको ड्राइव करते देखेगा, वो उनका फैन हो जाएगा। दादी फर्राटे से कार चलाती हैं। उन्होंने अपनी जांबाज़ जज़्बे के कारण बेतहाशा सुर्ख़ियों बंटोरी क्योंकि ये काम वो 95 साल की उम्र में कर रही हैं। अब उन्हें अपना ये शौक पूरा करते हुए देवास की किसी भी खुली सड़क पर देखा जा सकता है। देखने वाला एक तो अपनी आंखों और कान पर यकीन नहीं कर पाता। रेशम बाई का वीडियो वायरल हो गया और मुख्यमंत्री तक पहुंच गया।
उत्तर प्रदेश की ये 'डांसिंग दादी' पुरानी रूढ़ियों को तोड़ रही है
उम्र के साथ शरीर बूढ़ा हो सकता है, लेकिन हमारी आत्मा की जीवंतता हमें युवा, फुर्तीला और सपनों से भरा रखती है। लोकप्रिय रूप से 'डांसिंग दादी' कही जाने वाली इंस्टाग्राम सेंसेशन रवि बाला शर्मा ने इस नज़ाकत और खूबसूरती के साथ डांस करती हैं की देखने वालों का दिल भर आता है। रिटायरमेंट के बाद उन्होंने अपने युवा समय के शौक को पूरा करने के लिए बॉलीवुड गानों पर नृत्य शुरू किया, जिससे उन्हें 1 वर्ष की छोटी अवधि के भीतर व्यापक प्रसिद्धि और मान्यता प्राप्त मिली। इंस्टाग्राम पर 135K से अधिक फॉलोअर्स के साथ, बाला जी ने कई डांसिंग दिग्गजों से प्रशंसा बटोरी है और यहां तक कि 'डांस दीवाने' जैसे प्रतिष्ठित प्लेटफॉर्म पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है।
क्वीन ऑफ़ एथलेटिक्स भगवानी देवी डागर
94 वर्षीय भगवानी देवी डागर (Bhagwani Devi Dagar) ने साबित कर दिया कि उम्र कोई बाधा नहीं हो सकती जब आप आत्मविश्वास और साहस के साथ आगे बढ़ते हैं। उन्होंने टाम्परे (Tampere) में विश्व मास्टर्स एथलेटिक्स चैंपियनशिप (World Masters Athletics Championships) में 100 मीटर स्प्रिंट (Sprint) में स्वर्ण पदक जीता है। 94 वर्षीय एथलीट भगवानी देवी ने यह सुनिश्चित किया कि फिनलैंड के टाम्परे में भारतीय ध्वज को ऊंचा फहराया जाए। भगवानी जी ने 100 मीटर स्प्रिंट को 24.74 सेकेंड के समय में पूरा किया और गोल्ड मेडल हासिल किया।
साथ ही शॉटपुट (Shot put) और डिस्कस थ्रो (Discus throw) में ब्रॉन्ज़ मेडल भी हासिल किया। 'भगवानी' दादी ने 94 वर्षीय की उम्र में एथलेटिक्स में पदक जीतकर हर किसी को अचम्भित कर दिया। साथ ही बुजुर्गों और युवाओं के लिए भी एक प्रेरणास्रोत बन गयी हैं।
शाहीन बाग की दादी बिलकिस
दिल्ली के शाहीन बाग में नागरिकता संशोधन अधिनियम सीएए के खिलाफ महीनों प्रदर्शन चला था। इस प्रदर्शन में एक 82 वर्षीय बुजुर्ग महिला ने भी भाग लिया था जिनका नाम है बिलकिस दादी। एनआरसी-सीएए कानून के खिलाफ विरोध का चेहरा बनकर उभरीं बिलकिस दादी यूपी के बुलंदशहर की रहने वाली हैं। उनके पति की करीब ग्यारह साल पहले मौत हो चुकी है। बिलकीस फिलहाल शाहीनबाग में अपने बहू-बेटों और पोते-पोतियों के साथ रहती हैं। शाहीनबाग प्रदर्शन में दादी के नाम से मशहूर हुईं बिलकिस ने नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में नारा दिया था कि, जब तक रगों में खून बह रहा है, तब तक यहीं बैठी रहूंगी। उनके साथ दो दादी और भी थीं, जो हर वक्त प्रदर्शन में साथ ही रहती थीं।
दुनिया की सबसे प्रतिष्ठित मैगजीन टाइम ने साल 2020 के शीर्ष 100 प्रभावशाली लोगों की लिस्ट जारी की थी जिसमें जगह पाने वालों में शाहीन बाग की बिलकिस दादी भी शामिल थी जो सीएए के खिलाफ पूरे भारत में हुए शांतिपूर्ण प्रदर्शनों का चेहरा रहीं।
कठिन चुनौतियों और जीवन की अनिश्चितताओं के बीच, हम में से बहुत कम लोग बढ़ती उम्र के साथ आकांक्षाओं को पूरा करने में सक्षम होते हैं। वृद्धावस्था की कठिनाइयों ने भले ही इन साहसी महिलाओं की शारीरिक शक्ति को बदल दिया हो, लेकिन अपने हितों को आगे बढ़ाने की उसकी इच्छा बरकरार है, क्योंकि वह हर गुजरते दिन के साथ खुद को बेहतर बनाना चाहती हैं। वह अपने जैसे लाखों लोगों के लिए आशा की किरण के रूप में जीवित हैं और लोगों को अपने सपनों को हकीकत में बदलने के लिए प्रोत्साहित करती रहती हैं।
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