गलवान घाटी में हुई भारत और चीन की लड़ाई को आज हुए दो साल, पराक्रमी शहीदों को नमन कर रहा है देश
15 जून 2020 को गलवान नदी घाटी (Galwan Ghati) में भारतीय और चीनी सैनिकों के क्रूर और खूनी विवाद को हुए आज 2 साल हो गए हैं। भारत ने इस गलवान घाटी की खूंखार लड़ाई में अपने 20 बहादुर सैनिकों को खो दिया था। हमारे 20 सैनिकों (जो संघर्ष के लिए पूरी तरह से तैयार थे) के खिलाफ चीन ने कई अधिकारियों सहित दोगुने से अधिक सैनिक खोये। रिपोर्ट से पता चलता है कि भारतीय सैनिकों की वीरता देखकर लड़ाई में शामिल चीनी सैनिक न ही सिर्फ शारीरिक बल्कि दिमागी रूप से भी इतने घायल हो गए की उन्हें इस ऑपरेशन से इवेक्युएट (evacuate) करना पड़ा था।
आज, हम उस गंभीर संघर्ष को याद कर रहे हैं और उन पराक्रमी सैनिकों को श्रद्धांजलि देते हैं जिन्होंने बहादुरी से लड़ाई लड़ी और अपने राष्ट्र के लिए शहीद हुए। हमारा सर फक्र से ऊंचा हो जाता है, जब हम 16 बिहार रेजिमेंट के कमांडिंग ऑफिसर (Commanding Officer of the 16 Bihar regiment ) 'कर्नल संतोष बाबू' (Colonel Santosh Babu) को याद करते हैं जो चीन के विश्वासघात के कारण सामने से सेना का नेतृत्व करते हुए शहीद हो गए थे।
हम याद करते हैं घातक कमांडो (Ghatak commando) के 23 वर्षीय सिपाही गुरतेज सिंह (Gurtej Singh) को जिनकी सेवा दो साल से कम थी लेकिन एक शेर का दिल था और जिन्होंने भारत माँ को समर्पित होने से पहले 12 चीनी सैनिकों को मार गिराया। उस भयानक शाम को गलवान में लड़ने वाले सभी सैनिक ऐसे नायक थे जिनके साहस और बल से लोककथाएँ बनती हैं।
भारतीय सैन्य इतिहास में गलवान की लड़ाई का अनूठा स्थान क्यों रहेगा
इस लड़ाई में भारत और चीन की सेनाओं के बीच लड़ाई आदिम हाथ से बने हथियारों जैसे नुकीले क्लबों, कृपाणों (सिखों द्वारा उठाए गए छोटे खंजर) आदि के साथ हैंड टू हैंड लड़ाई हुई थी। यह संघर्ष 16 बिहार रेजिमेंट के कंट्रोल वाले इलाके में हुआ। फिर भी, एक आर्टिलरी रेजिमेंट, महार और पंजाब बटालियन के सैनिकों ने कंधे से कंधा मिलाकर ऐसी बलशाली भावना से यह लड़ाई लड़ी जो जज़्बा केवल भारतीय सेना में ही नज़र आ सकता था। अंत में, पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) को बिना किसी अनिश्चित शब्दों के कहा गया कि भारतीय सेना अब उसकी कट्टरता और विस्तारवादी रणनीति को बर्दाश्त नहीं करेगी।
भारत के लिए महत्वपूर्ण बात
भारत को इस तथ्य के प्रति सचेत रहने की जरूरत है कि गठबंधनों और संधियों के बावजूद, चीन से यह लड़ाई उसे अपने दम पर लड़नी होगी। कोरोना और अन्य दबाव वाले मुद्दों द्वारा बनाई गई आंतरिक स्थिति की परवाह किए बिना सैन्य तैयारी जारी रहनी चाहिए। व्यापक राष्ट्र शक्ति का निर्माण तब तक जारी रहना चाहिए जब तक कि चीनी खतरा अच्छी तरह से निष्प्रभावी न हो जाए। इस दिशा में भारत सरकार और भारतीय सेना ने कोई कमी नहीं रखी है साथ ही दुश्मन को मुहतोड़ जवाब देने के लिए हमारी सेना पूरी तरह से प्रतिबद्ध है। इसके साथ ही सशस्त्र बलों के पास एलएसी (LAC) को सुरक्षित रखने और चीनी दुस्साहस का प्रभावी ढंग से जवाब देने के लिए स्पष्ट आदेश हैं।
आपको बता दें कि चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के जवानों ने साल 2020 में पूर्वी लद्दाख के गलवान घाटी में घुसपैठ की थी। और इसके बाद से ही LAC पर भारत और चीन के बीच गतिरोध और बढ़ गया।
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