World IVF Day - कहानी डॉ. सुभाष मुखोपाध्याय की जिन्होंने भारत को IVF तकनीक का उपहार दिया
भारत वही राष्ट्र है जिसने दुनिया को 'सुश्रुत संहिता' का ज्ञान देकर इलाज करने का अनमोल तरीका सिखाया। आज के मॉडर्न समय में इन विट्रो फर्टिलाइजेशन (IVF) तकनीक काफी आम है, इस प्रोसेस ने कितने ही प्रजनन समस्याओं से जूझ रहे जोड़ों को एक बच्चे को जन्म देने में सक्षम बनाया है। और यहाँ तक अब समलैंगिक जोड़ों और सिंगल मदर्स को भी बच्चे को जन्म देना इस तकनीक के कारण आसान हो गया है।
लेकिन क्या आप जानते हैं की भारत में इस चमत्कार का आविष्कार किसने किया ?
यह 3 अक्टूबर,1978 की बात है जब भारत की पहली और दुनिया की दूसरी टेस्ट ट्यूब बेबी दुर्गा ( Test tube baby Durga aka Kanupriya Agarwal ) का जन्म हुआ। और ऐसे असाधारण और अविश्वसनीय काम को करने की विलक्षण प्रतिभा और साहस था कोलकाता के डॉ. सुभाष मुखोपाध्याय में, जिन्होंने भारत की आगामी पीढ़ियों को इन विट्रो फर्टिलाइजेशन (IVF) तकनीक का तोहफ़ा दिया।
आज 25 जुलाई को वर्ल्ड आवीएफ डे (World IVF Day) के नाम से जानते हैं जब दुनिया के पहले टेस्ट ट्यूब बेबी (Test tube baby) का जन्म हुआ था और इस तारीख़ से ठीक 67 दिन बाद भारत में यह चमत्कार हुआ।
आईये जानते हैं की डॉ. सुभाष मुखोपाध्याय की अग्रणी लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण कहानी।
एक विलक्षण वैज्ञानिक को नहीं मिला उनके हक़ का सम्मान
टेस्ट ट्यूब (Test tube) के माध्यम से पैदा हुई बच्ची का नाम देवी 'दुर्गा' के नाम पर रखा गया था क्योंकि 3 अक्टूबर 1978 को, यह दुर्गा पूजा का पहला शुभ दिन था। सीमित संसाधनों और तकनीक के साथ भी डॉ. सुभाष मुखोपाध्याय का प्रयोग शत-प्रतिशत सफल रहा। लेकिन अगर अतीत के पन्नों को पलटकर देखा जाए तो लेकिन यह कड़वा सच सामने आता है की कोलकाता के डॉ. सुभाष मुखोपाध्याय को उनके अग्रणी काम के लिए उचित पहचान कभी नहीं मिली।
बंगाल में कम्युनिस्ट सरकार ने उनकी ऐतिहासिक उपलब्धि को उचित मान्यता देने से इनकार करने के लिए हर कोशिश की। उसने डॉ. सुभाष के दावों की जांच के लिए एक पैनल नियुक्त किया। समिति का नेतृत्व एक रेडियो भौतिक विज्ञानी और स्त्री रोग, न्यूरोफिज़ियोलॉजी और शरीर विज्ञान जैसे विभिन्न क्षेत्रों के सदस्यों ने किया था।
कमेटी ने अंत में डॉ. सुभाष मुखोपाध्याय के दावे को फर्जी करार दिया। हम कल्पना भी नहीं कर सकते की डॉ. सुभाष मुखोपाध्याय को किस स्तर के अपमान का सामना करना पड़ा। यह कितना दुर्भाग्यपूर्ण है की जिस व्यक्ति को उसकी अग्रणी उपलब्धि के लिए खिताबों और सम्मानों के लिए नवाज़ा जाना चाहिए था शायद वही उनके अंत का कारण बन गया।
अपने आखिरी खत में उन्होंने लिखा, "मरने के लिए मैं हर दिन दिल का दौरा पड़ने का इंतजार नहीं कर सकता।''
डॉक्टर टीसी आनंद कुमार ने यह सच दुनिया के सामने रखा
1986 में भारत के एक अन्य डॉक्टर टीसी आनंद कुमार (Dr. T. C. Anand Kumar) ने टेस्ट ट्यूब विधि से एक बच्ची को जन्म दिया। उन्हें भारत में टेस्ट ट्यूब बेबी को जन्म देने वाली पहली डॉक्टर का खिताब मिला। वर्ष 1997 में, डॉ आनंद को महत्वपूर्ण दस्तावेज मिले, जिससे उन्हें एहसास हुआ कि उनसे पहले डॉ मुखोपाध्याय ने यह महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल की थी। सभी दस्तावेजों के गहन अध्ययन के बाद, डॉ आनंद कुमार ने निष्कर्ष निकाला कि डॉ सुभाष मुखोपाध्याय भारत को टेस्ट ट्यूब बेबी का उपहार देने वाले पहले वैज्ञानिक थे।
डॉ आनंद कुमार की पहल के कारण, डॉ. सुभाष मुखोपाध्याय को आखिरकार भारत के पहले टेस्ट-ट्यूब बेबी को जन्म देने का श्रेय दिया गया। डॉ. आनंद कुमार की पहल के कारण, डॉ. सुभाष मुखोपाध्याय को आखिरकार भारत के पहले टेस्ट-ट्यूब बेबी को जन्म देने का श्रेय दिया गया। फिल्म "एक डॉक्टर की मौत" से इस कहानी को दुनिया के सामने लाया गया था।
हालांकि डॉ. सुभाष मुखोपाध्याय को कभी भी वह प्यार और सम्मान नहीं मिला जिसके वे हकदार थे, लेकिन उनके वैज्ञानिक कार्यों ने इतिहास रचा है और उन्हें एक शाश्वत प्राणी बना दिया है। जैसा कि वे कहते हैं, लेजेंड्स कभी नहीं मरते नहीं हैं, वे अपने विचारों और कार्यों के माध्यम से अजर अमर रहते हैं।
लेकिन अब हमे जागना चाहिए और अपने प्रतिभाशाली शोधकर्ताओं, वैज्ञानिकों और सामाजिक कार्यकर्ताओं को उनके जीवित रहते हुए सम्मानित करना चाहिए, जिन्हें बाधाओं, राजनीति या सामाजिक बहिष्कार के कारण भुला दिया गया है !
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