बांधनी और लहरिया की सदियों पुरानी रंगीन परम्पराओं की चमक राजस्थान के हर कोने में दिखती है
दुनिया की सबसे पुरानी जीवित टाई एंड डाई (Tie-dye) परंपराओं के रूप में प्रसिद्ध है राजस्थान का बांधनी (Bandhani) और लहरिया (Leheria)। बांधनी (Bandhani) शब्द संस्कृत की क्रिया 'बंध' से निकला है, जिसका अर्थ है "बांधना," और इसमें प्राकृतिक रंगों का प्रयोग किया जाता है। बांधनी (Bandhani) कपड़े पर छोटे-छोटे बिंदुओं को लगातार एक धागे से बांधने और रंगने की खूबसूरत राजस्थानी कला है। समृद्ध कच्छ बेल्ट कई कुशल बंधनी कारीगरों का घर है, क्योंकि यह प्राचीन कला गुजरात और राजस्थान राज्यों से आई है। समय के साथ, जयपुर, जोधपुर और उदयपुर जैसे शहर ऐसे बांधनी की वस्तुओं और विशेष रूप से साड़ियों की बिक्री के लिए प्रमुख व्यावसायिक केंद्र बन गए हैं।
आइये इन राजस्थानी शिल्प रूपों की स्थापना और तकनीक पर एक नज़र डालें जो अपने जीवंत रंगों और शैलीगत पैटर्न के लिए पूरे भारत में प्रसिद्ध हैं।
पश्चिमी भारत की सबसे पुरानी रंगाई परंपरा
मुख्य रूप से पश्चिमी भारत (Western India) में प्रचलित इस प्राचीन कला की दिलचस्प बात यह है कि इसके लिए कारीगरों को लंबे नाखूनों की आवश्यकता होती है ताकि कपड़े को अधिक सटीकता के साथ बांधा और रंगा जा सके। इसके लिए तेज़ हाथों की भी आवश्यकता होती है, क्योंकि गाँठ जितनी छोटी होती है उतना ही अधिक समय लगता है। विशेष रूप से, यह कपड़ों के हिस्सों को अलग-अलग तरीकों से बांधकर पैटर्न बनाने की तकनीक हैं।
बांधनी (Bandhani) की कला से पगड़ी, दुपट्टे, और साड़ियों के रूप में कुछ उत्पाद सुन्दर और चमकदार बॉर्डर्स के साथ आते हैं जिनपर मिरर वर्क किया जाता है। बंधे-रंगे कपड़ों की एक अन्य श्रेणी जो राजस्थान से बहुत लोकप्रिय हैं, वह लहरिया (Leheria) हैं। शुरुआत में जयपुर में 17वीं सदी के आसपास विकसित किया गया था, लहरिया (Leheria) एक ऐसी तकनीक है जिसमें रंगों के माध्यम से कपड़े पर डायगोनल पैटर्न बनाए जाते हैं। कहा जाता है कि ये लहरदार पैटर्न थार रेगिस्तान के रेत के टीलों से प्रेरित हैं। कुछ लोगों द्वारा यह भी कहा गया है कि राजस्थान के प्रत्येक राजघराने में एक सिग्नेचर लेहरिया पैटर्न और रंग था जिसे केवल संबंधित घराने ही सजा सकते थे।
जबकि बंधेज और लहरिया राजस्थान के सबसे प्रसिद्ध टाई और डाई प्रिंट हैं, यह रंगाई की तकनीक विभिन्न प्रकार के पैटर्न बना सकती है। इसलिए, कपड़ों पर अलग-अलग मोटिफ जैसे एकदली और शिकारी उपलब्ध हैं। मोथरा को लहरिया का विस्तृत रूप माना जाता है और इसमें डायगोनल रेखाएं विपरीत दिशाओं में एक दूसरे को पार करती हैं, जिससे हीरे के तरह पैटर्न नज़र आते हैं।
राजस्थान के सीकर (Sikar) और बीकानेर (Bikaner) में बेहतरीन बंधेज और लहरिया के कपड़े बनाए जाते हैं। बंधेज और लहरिया के अन्य उत्पादन केंद्र जोधपुर, उदयपुर, बाड़मेर और जयपुर हैं। ये टाई एंड डाई तकनीक राजस्थान की जीवंत संस्कृति की सच्ची प्रतिबिंब है, जो राज्य को भारत के अन्य हिस्सों से अलग करती है। इसलिए यदि आप भी अपनी अलमारी में कुछ कलात्मक रूप से रंगे बांधनी और लहरिया के कपड़ों से सजाने चाहते हैं तो राजस्थान के खुले बाज़ारों का दौरा करें जहाँ आपको इस तकनीक की विशाल रेंज मिलेगी और आप इन प्राचीन कलाओं के कारीगरों से भी बात कर सकते हैं।
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