साल 1951 से 1979 के बीच लखनऊ पर बने इन 5 गानों में शहर का खूबसूरती से जिक्र किया गया है
लखनऊ अपनी ऐतिहासिक नवाबी विरासत के लिए पूरी दुनिया में मशहूर है। अवध के नवाबों की कहानियां हर किसी ने सुनी है और बॉलीवुड ने भी इन कहानियों को फिल्मों में खूब दिखाया है। इसके साथ ही बॉलीवुड के दिग्गज संगीतकारों और गायकों ने भी अपनी लेखनी और गायकी में लखनऊ को बखूबी दर्शाकर लोगों का मनोरंजन किया है।
महान गायक मोहम्मद रफी, आशा भोसले, गीता घोष रॉय, ग़ुलाम मुस्तफ़ा दुर्रानी जैसे दिग्गजों ने अपने गानों में लखनऊ का ज़बरदस्त चित्रण किया है।
हम आपके लिए ऐसे ही 5 गानों की सूचि लेकर आये हैं जिन्हे शायद आपने ना सुना हो ! यह सभी गाने वर्ष 1951 से 1979 के बीच लिखे और गाए गए हैं।
1951 - लखनऊ चलो अब रानी
लखनऊ चलो अब रानी लखनऊ
चलो अब रानी बम्बई का बिगड़ा
पानी लखनऊ चलो अब रानी
यह मशहूर गाना साल 1951 में रिलीज़ हुई फिल्म संसार का है, जिसे पंडित इंद्रा चंद्र ने लिखा है और इसे गीता घोष रॉय और ग़ुलाम मुस्तफ़ा दुर्रानी ने मिलकर गाया है। यह गाना बम्बई से लखनऊ जाने की बात करता है क्यूंकि बम्बई का पानी और मिज़ाज़ दोनों ही बिगड़ा हुआ है।
1960 - ये लखनऊ की सर ज़मीन
ये लखनऊ की सरज़मीं
ये रंग रूप का चमन , ये हुस्न ओ इश्क़ का वतन
यही तो वो मुकाम है, जहाँ अवध की शाम है
साल 1960 में रिलीज़ हुई चौदहवीं का चाँद का यह गाना लखनवी अदब और तहजीब तथा आपसी भाई-चारे का चित्रण करता है। इस गाने को लेखक शकील बदायुनी ने लिखा है और इसे संगीत की दुनिया के महान गायक मोहम्मद रफ़ी साहब ने गया है।
1979 - लखनऊ छुटा तो दिल्ली ने लूटा
लखनऊ छूटा तो दिल्ली ने लूटा
ये माना कभी मैं नादान थी
यारो ने दिखाया मुझे हर ख्वाब झूठा
साल 1979 में रिलीज़ हुई फिल्म सरकारी मेहमान का यह गाना लखनऊ छूटने पर दिल्ली में क्या होता है इस बात का चित्रण करता है। इस गाने को लेखक हसरत जयपुरी ने लिखा था और इसका संगीत रविंद्र जैन ने दिया था। इस गाने को आशा भोसले ने अपनी सुरीली आवाज़ में गया है।
1967 - ऐ शहर-ए-लखनऊ तुझे मेरा सलाम है
ऐ शहर-ए-लखनऊ तुझे मेरा सलाम है
तेरा ही नाम दूसरा जन्नत का नाम है
साल 1967 में रिलीज़ हुई फिल्म पालकी का यह गाना लखनऊ की गलियों और इसकी खूबसूरती का बखूबी चित्रण करता है। इस गाने को लेखक शकील बदायुनी ने लिखा है और इसे अपनी मधुर आवाज़ में गायक मोहम्मद रफ़ी साहब ने गया है।
1972 - पंवरान हूँ मैं लखनऊ की
पंवरान हूँ मैं लखनऊ की
हो पंवरान हूँ मैं लखनऊ की
ले साजनवा खले पँवा
दे दे बदले में थोड़ा सा प्यार
आज सौदा नकद कल उधार
साल 1972 में रिलीज़ हुई फिल्म बाज़ीगर का यह गाना लखनऊ की पंवरान की चालाकी का चित्रण करता है। पंवरान का मतलब होता है पान वाली। इस गाने को लिखा है लेखक नक्श लायलपुरी ने और इसे अपनी सुरीली आवाज़ में आशा भोसले ने गाया है।
लखनऊ शुरू से ही अपनी नवाबी विरासत, मीठी बोली और तरबियत के लिए दुनियाभर में मशहूर रहा है। यहाँ का सांस्कृतिक परिवेश शाही होते हुए भी इतना सहज था कि बॉलीवुड भी इस शहर के आकर्षण से अछूता नहीं रहा !
हमें उम्मीद है कि आपको लखनऊ पर बने इन पांच गानों को सुनकर अच्छा लगा होगा। अगर आपको यह सूचि पसंद आयी है तो इसे अपने दोस्तों के साथ जरूर साँझा करें। इसके साथ ही हमें कमेंट बॉक्स में लखनऊ से जुड़ा अपन पसंदीदा गाना लिखकर जरूर बताएं।
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